मेरी ही हसरतों ने मुझको मारा, मुझे मालूम न था!
ताउम्र गैरत को कोसता रहा;
और खुद से ही रहा गैर,
मुझे मालूम न था!
मेरी चाहतों ने ही मुझको अजगर की तरह भींचा;
खुद के खून से ही मैंने अपने दुखों को सींचा !
जो उगे उस पर फूल मेरी मौत के,
मुझे मालूम न था !
जिस जिस को कहा था ख्वाबों मैं मैंने अपना !
मेरे रिश्तों का बोझ उम्र भर घुट घुट कर वो ढोते रहे !
ऊपर से हँसते रहे हमेशा और अंदर से रोते रहे,
मुझे मालूम न था !
करना माफ़ ओ तमां जहान मुझको
तुम्हारी नफरत को मैंने ही सींचा,तुम तो रहनुमा मेरे थे !
गम के दानों को मैंने ही चुगा, तुमने तो मोती बिखेरे थे,
खुद ही खुद को ठगा, ये मुझको मालूम न था !
शुक्रगुज़ार हूँ उस खुदा का,जगाया जिसने है मुझको;
हटा के आँखों का पर्दा, दिखाया सच है मुझको !
मेरा रहनुमा मेरे इतनी नज़दीक था,
मुझे मालूम न था !
OH MY GOD! This is soo unbelievably beautiful!
ReplyDeleteaap itni achhi poem likhte ho, mujhe maloom na tha
ReplyDeleteawesome poem aunty...gr8 grasp on hindi vocab...u should write more, I dont see much activity this year...may be write more about family/relations this time around :)
ReplyDeleteWow truely beautiful poem.....
ReplyDeleteThanks all!
ReplyDelete@C Truely speaking I don't write at my own will.It just happens! And I pen it down whenever it happens on whatsoever topic...