क्यों चुप हो गयी है मेरी कविता
ये एहसास हो रहा है
सब अर्थहीन है
और
मैं भी अंश हूँ
उस अर्थहीन का
तो कविता भी
निरर्थक होती जा रही है
मेरी कविता
चुप होती जा रही है
आयु:पर्यन्त
बहुत कुछ चाहा
कुछ मिला
कुछ नहीं मिला
जो नहीं मिला
निरर्थक था
पर जो मिला
वो भी निरर्थक होता जा रहा है
अत: चुप होती जा रही है मेरी कविता
समय यूँ फिसल रहा है
मानो मुट्ठी से रेत
फिर भी कुछ कण चिपके हैं
हाथों में चिपचिपाहट अभी बाकि है
ज्यों ज्यों साफ़ हो रहें हैं
वो कण भी छुटते जा रहें हैं
तो चुप होती जा रही है मेरी कविता
चुप होती जा रही है मेरी कविता
ॐ में लीन होती जा रही है मेरी कविता
यह कविता तो बहुत अछी है!
ReplyDeleteOne of your best, i must say
I love reading your poems and blogs, so please keep writing
Great great great GREAT poem!! Every paragraph says so much!! every example is beautiful..
ReplyDeleteWaoow Mumma.... such a nice one!! Unbelievably good! Please don't ever stop writing again..!
ReplyDelete:)