मैं क्या हूँ ,क्या दिखता हूँ!
देखो तो बाहर से मैं कितना सुंदर सा दिखता हूँ!
मैं कितना सुंदर दिखता हूँ!!
इक ज्वाला सी मन मैं धधक रही;
विरह के भय में सुलग रही;
अंगारों के ऊपर भी मैं कितना शीतल सा दिखता हूँ!
मैं कितना शीतल दिखता हूँ!!
क्यों मान नहीं मैं कलप रहा;
अंजान खड़ा सा सिसक रहा;
इक अजनबी मुस्कान लिए ,कितना अपना सा दिखता हूँ!
सबको अपना सा दिखता हूँ!!
दिव्य स्वप्न सा जाता जीवन दिख रहा
ये करना था ये नहीं किया ,वो करना था वो नहीं किया;
इन विक्षेपों की धाराओं पर,मैं कितना शांत सा दिखता हूँ!
मैं कितना शांत सा दिखता हूँ!!
ऐसा होता तो अच्छा था,वैसा होता तो अच्छा था;
यह क्यों हुआ,वह क्यों न हुआ;
इस शोर से आहत हूँ भीतर ,पर बाहर मैं मौन सा दिखता हूँ!
मैं कितना मौन सा दिखता हूँ!!
दुनिया से जाने से पहले ,मैं कुछ बन कर दिखलाऊँगा ;
याद करें पीछे सब मुझको ,ऐसा कुछ करके जाऊँगा
ऊंचे संकल्पों के पर्वत पर खड़ा ,नीचा धरती पर दिखता हूँ!
मैं कितना झुकता सा दिखता हूँ!!
तुम भी मेरे, वो सब मेरे;
यह भी मेरा, वह भी मेरा;
इन संबंधों की जकड़न में,मैं कितना मुक्त सा दिखता हूँ!
मैं कितना मुक्त सा दिखता हूँ!!